⇒ भीलों के नृत्य
भीलों के नृत्य (bhilo ke nritya)
⇒ भीलों में विभिन्न प्रकार के नृत्य प्रचलित है , जो अधिकांशतः वृत्ताकार पथ पर किए जाते है। स्त्री पुरुष के सामूहिक नृत्य में आधा वृत्त स्त्रियों का व आधा पुरुषों का होता है।
कुछ नृत्यों में एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर पद संचालन किया जाता है। इनके बीच में एक पुरुष छाता लेकर चलता है। यह गीत व नृत्य प्रारंभ करता है। पुरुष नृत्य के बीच-बीच में किलकारियाँ मारते हैं।
राई या गवरीः
यह एक नृत्य नाटक है। इसके प्रमुख पात्र भगवान शिव होते है। उनकी अर्धांगिनी गौरी (पार्वती) के नाम के कारण ही इसका नाम गवरी पङा। शिव को पुरिया कहते हैं। इनके त्रिशुल के इर्द-गिर्द समस्त नृत्य-पात्र जमा हो जाते हैं जो मांदल व थाली की ताल पर नृत्य करते है।
⇒ इसे राई नृत्य के नाम से जाना जाता है।
⇒समय- सावन-भादों में समस्त भील प्रदेशों में।
⇒गवरी की घाई- गवरी लोक नृत्य-नाटिका में विभिन्न प्रसंगों को एक प्रमुख प्रसंग से जोङने वाले सामूहिक नृत्य को गवरी की घाई कहते है।
युद्ध नृत्य-
भीलों द्वारा सुदुर पहाङी क्षेत्रों में हथियार के साथ किया जाने वाला तालबद्ध नृत्य।
द्विचकी नृत्य-
विवाह के अवसर पर भील पुरुषों व महिलाओं द्वारा दो वृत्त बनाकर किया जाने वाला नृत्य।
लोकनृत्य घूमरा-
बाँसवाङा, डूँगरपूर तथा उदयपुर जिले की भील महिलाओं द्वारा ढोल व थाली वाद्य के साथ अर्द्धवृत्त बनाकर घूम-घूम कर किया जाने वाला नृत्य
Leave a Reply