आज के आर्टिकल में हम भिखारी(Bhikhari) के बारे में चर्चा करेंगे ,इनसे जुड़े तथ्य भी जानेंगे ।
भिखारी – Bhikhari
दोस्तो आज हम बड़े ही दिलचप्स टॉपिक पर चर्चा करेंगे। अगर हम सोचें कि मनुष्य बलवान है पर भगवान् से बड़ा नही होता है। भगवान ने किसी को बहुत अधिक दौलत दे दी है । वहीं दूसरी और बहुत सारे ऐसे मनुष्य भी होते है जिनके भाग्य में भगवान ने बहुत ज्यादा गरीबी लिख दी होती है ।
क्या भिखारी इंसान नही होते है ?
मेरे प्यारे दोस्तो भिखारी इंसान ही होते है बस फर्क इंतना होता है कि हर मनुष्य का अपना नजरिया होता है। अगर हम माने तो भिखारी भी हमारे जैसा इंसान होता है । इसकी जीवन शेली अलग होती है । इनके पास गरीबी के कारण पैसा नही होता है । इसलिए ये गरीबी में ही जीवन यापन करतें है । भीख मांग कर खाना ही इनका पेशा होता है । इन्हें आधुनिक जीवन शैली से कोई मतलब नही होता है । एक आम आदमी की तरह ही होते है ।
आज हम एक भिखारी की कहानी के बारे में बात करेंगे ,आप इस कहानी को पूरा जरुर पढना ।
लालची भिखारी (Lalchi Bhikhari)
एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला ।चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षा मांगने के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते।
झोली में कुछ न कुछ जरूर रख लेते हैं।
पूर्णिमा का दिन था। इस दिन लोग दान करते हैं। इसलिए भिखारी को विश्वास था कि आज ईश्वर की कृपा होगी और झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। वह एक जगह खड़ा होकर भीख मांग रहा था। तभी उसे सामने से उस देश के नगरसेठ की सवारी आती दिखाई दी।
सेठ पूर्णिमा को किया जाने वाला नियमित दान कर रहा था। भिखारी तो खुश हो गया। उसने सोचा, नगर सेठ के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से उसका कई दिनों का काम हो जाएगा। जैसे-जैसे सेठ की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई।
सेठ का रथ पास रूका और वह उतरकर उसके पास पहुंचे। अब तो भिखारी न जाने क्या-क्या प्राप्त करने के सपने देखने लगा। लेकिन यह क्या, बजाय भिखारी को भीख देने के सेठ ने उलटे अपनी कीमती चादर उसके सामने फैला दी।
सेठ ने भिखारी से ही कुछ दान मांग लिया।
वह रोज लोगों के सामने झोली फैलाता है। आज उसके सामने किसी ने झोली फैला दी वह भी नगर के सबसे बड़े सेठ ने। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था क्या करे। अभी वह सोच ही रहा था कि सेठ ने फिर से याचना की।
भिखारी धर्मसंकट में था। कुछ न कुछ तो देना ही पड़ेगा।
कहां वह बड़ा दान पाने की आस लगाए बैठा था, कहां अपने ही माल में से कुछ निकलने वाला था। उसका मन खट्टा हो गया। भिखारी ने निराश मन से अपनी झोली में हाथ डाला। हमेशा दूसरों से लेने वाला मन आज देने को राजी नहीं हो रहा था।
हमेशा लेने की नीयत रखने वाला क्या देता. जैसे-तैसे करके उसने झोली से जौ के दो दाने निकाले और सेठ की चादर में डाल दिया। सेठ उसे लेकर मुस्कुराता हुआ चला गया। हालांकि उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली थी। फिर भी उसने जौ के जो दो दाने अपने पास से गंवाए थे, उसका पछतावा सारे दिन रहा।
बार-बार यही ख्याल आता कि न जाने क्या हुआ सेठ को देने के बजाय लेकर ही चला गया। आज सभी भिखारियों को दान दे रहे हैं वह वह उलटा ले रहा है। कैसा जमाना आ गया है ?
अच्छा हुआ मैंने जौ के दो ही दाने दिए, मुठ्ठीभर नहीं दिया। यही सब सोचता हुआ वह घर पहुंचा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह अपने साथ लेकर गया था उसके दो दाने सोने के हो गए थे।
जौ के दाने सोने के कैसे हो गए और हुए भी तो केवल दो ही दाने क्यों। पूरे ही हो जाते तो कंगाली मिट जाती। वह यह सोच ही रखा था कि उसका माथा ठनका।
कहीं यह सेठ को दिए दो दानों का प्रभाव तो नहीं है। भिखारी को समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है। वह पछताया कि काश! उस सेठ को और बहुत सारी जौ दे दी होती, लेकिन नहीं दे सका, क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी।
हम ईश्वर से हमेशा पाने की इच्छा रखते हैं, क्या कभी सोचा है कि कुछ दिया जा सकता है। इंसान की क्या औकात कि वह ईश्वर को कुछ दे सके। यदि वह उस गरीब का कुछ भला कर दे जो ईश्वर का दंड झेलता कष्टमय जीवन बिता रहा है, वही ईश्वर को देना कहा जाता है।
“रहिमन वे नर मर चुके जे कछु मांगन जाहिं, उनसे पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाहीं.”
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमारे पास कितनी भी सम्पत्ति हो ,थोड़ी या बहुत । हमारे में कुछ दान देने की सामर्थ्यता होनी चाहिए । यही सच्ची मानवता है
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